Thursday, 25 November 2010

दिल-ए-आवारा

ठहर, दिल-ए-आवारा ठहर....
ठहर, दिल-ए-आवारा ठहर,
कूचा-ए-सनम मे कुछ और ठहर,
माना, गरेबां चाक है फिर भी,
इसमे कुछ धड़कनें तो बाकी हैं,
अभी तो दर्द-ए-मुहब्बत के,
कई पेंचो-खम सुलझने बाकी हैं,ठहर,
दिल-ए-आवारा ठहर,
कूचा-ए-सनम मे कुछ और ठहर....
अभी तो उसकी गली के मंज़र,
नज़र की हदों से गुज़रने बाकी हैं
दिल के गुलमोहर से टूट कर,
कुछ और ख्वाब बिखरने बाकी हैं,
ठहर,दिल-ए-आवारा ठहर,
कूचा-ए-सनम मे कुछ और ठहर....
अभी ठहर,
कि रहगुज़र-ए-यार मे,मील का,
आख़िरी पत्थर बाकी है,
मंज़िल पर पहुँच कर जो भटक गईं
उन आरज़ूओं का सफ़र अभी बाकी है,
ठहर, दिल-ए-आवारा ठहर,
कूचा-ए-सनम मे कुछ और ठहर....
ठहर दिल-ए-आवारा ठहर,कूचा-ए-सनम मे कुछ और ठहर,
थोड़ी सी देर और ठहर,
कुछ लम्हा और ठहर,बस थोड़ा सा और ठहर,
फक़त कुछ देर और ठहर.....

3 comments:

  1. U somehow always manage to take my heart away. Thumbs up!!

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  2. Very well written bro...too good :)

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  3. दिल जीत लिया दोस्त!

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