Tuesday 10 March 2020

Jaunpur; a brief glimpse of its history

जौनपुर के प्राचीन इतिहास का अवलोकन करने से पता चलता है कि श्री राम चन्द्र जी के काल में यहाँ कुछ ऋषि निवास करते थे. महाभारत में इसका प्राचीन नाम यमदग्नि पुरा था जो संभवतः प्रख्यात ऋषि यमदग्नि के नाम पर आधारित है. वह वर्तमान जमैथा नामक स्थान पर निवास करते थे जो जफ़राबाद और जौनपुर के बीच गोमती नदी के तट पर स्थित है.
गज़ेटियर जौनपुर के लेखक ने लिखा है कि यहाँ का प्राचीन  नाम अयोध्यापुरा हो सकता है  क्यूंकि श्री राम चन्द्र जी के काल में जौनपुर पर  करारबीर का राज्य था जो बड़ा निर्दयी था . रामचंद्र जी उसे परास्त करने जौनपुर आये थे. संभव है कि जौनपुर वासियों ने उनके जाने के बा’द यहाँ का नाम अयोध्यापुरा रखा हो.
जौनपुर को फ़िरोज़ शाह तुग़लक़  ने सन 1361 में अपने चचेरे भाई मुहम्मद बिन तुग़लक़ उ’र्फ़ जूना ख़ान के नाम पर बसाया और दुर्ग का निर्माण किया था ताकि बंगाल और दिल्ली में शान्ति बनाये रखने में सुविधा हो. जौनपुर बंगाल और दिल्ली के बीच में स्थित है .यह नगर चौदहवीं शताब्दी में फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ द्वारा बसाये हुए शहरों में सर्वाधिक महत्त्व का है . शर्क़ी बादशाहों के काल में जौनपुर उन्नति के शीर्ष पर था. पंद्रहवीं शताब्दी के आरम्भ में ऐसी  दो बड़ी घटनाएं हुईं जिन्होंने जौनपुर को एक समृद्ध शहर के रूप में स्थापित कर दिया –
1 . दिल्ली पर तैमूर का आक्रमण
जब दिल्ली पर तैमूर का आक्रमण हुआ, उस समय पूरे देश में अराजकता का माहौल था.तुग़लक़ साम्राज्य की नीव हिल चुकी थी. सन 1393 में महमूद शाह तुग़लक़ ने ख्व़ाजा जहाँ मलिक सरवर को विद्रोहियों के दमन के लिए भेजा. उसने विद्रोह दमन करने के पश्चात दिल्ली से अलग होकर अपना एक स्वतंत्र राज्य शर्क़ी शासन के नाम से स्थापित कर लिया और जौनपुर को अपनी राजधानी घोषित कर जौनपुर का बादशाह बन बैठा.
जौनपुर अपनी विशेष भौगोलिक स्थिति के कारन पूर्वी सीमा की अभेद्य दीवार समझा जाता था .
2. दूसरी बड़ी घटना इब्राहीम शाह के बादशाह हो जाने के बा’द हुई. इब्राहीम शाह ने सन 1402 ई. से लेकर 1444 ई. तक राज किया. इतिहासकारों ने उसे बड़ा विद्वान और न्याय प्रिय शासक बताया है .तैमूर के आक्रमण के समय दिल्ली से बहुत सारे विद्वानों का पलायन हुआ और वह दिल्ली से जौनपुर आ गए. इसका परिणाम यह हुआ कि जौनपुर ज्ञान और कला का प्रमुख केंद्र बन गया. विद्वानों ने जौनपुर को शीराज़-ए- हिंद भी कहा है .
जौनपुर की ख्याति उस समय इतनी बढ़ गयी थी कि मिस्र, अ’रब, ईरान और अफ़ग़ानिस्तान आदि देशों से बड़ी संख्या में विद्यार्थी जौनपुर का रुख़ करने लगे .
शर्क़ी शासन जौनपुर का स्वर्ण युग था. विद्यापति ने कीर्तिलता में इब्राहीम शाह शर्क़ी और जौनपुर के मनोहारी दृश्यों का चित्रण बड़े ही ख़ूबसूरत अंदाज़ में किया है. हम कुछ पदों का भावार्थ यहाँ दे रहे है –
जूनापुर नामक यह शहर बड़ा ही नयनाभिराम था  और यहाँ धन दौलत का भण्डार था. .जौनपुर देखने में सुन्दर और हर प्रकार से सुसज्जित था  .यहाँ कुओं और तालाबों का बाहुल्य था .पत्थरों का फ़र्श, पानी निकलने के लिए भीतरी नालियाँ, उन्नत कृषि और हरे भरे लहलहाते आम और जामुन के बाग़, भवरों की गूँज मन मोह लेती थी. यहाँ गगनचुम्बी और मज़बूत इ’मारतें थी.रास्ते में ऐसी ऐसी गलियां थी जहाँ बड़े बड़े लोग रुक जाते थे और रुक कर देखते थे .चमकदार और बड़े बड़े स्वर्ण कलश युक्त सैंकड़ों शिवाले नगर की शोभा बढ़ाते थे.कमल के पत्तों जैसी बड़ी आँखों वाली स्त्रियाँ जिन्हें पवन भी स्पर्श करने को लालायित रहता है, जिनके लम्बे लम्बे केश उत्तरी ध्रुव से बातें करते प्रतीत होते थे वहां टहल रही थी. उनकी आँखों में लगा काजल ऐसा प्रतीत होता था मानो चन्द्रमा में दाग़ हो. पान का बाज़ार,नानबाई की दुकान, मछली बाज़ार, यदि इन वास्तविकताओं पर प्रकाश डाला जाए तो इसपर विश्वास होगा. व्यवसाय से जुड़े लोग इतने व्यस्त थे कि हर समय भीड़ रहती थी. ऐसा लगता था कि मानो जन समुद्र अपना स्थान छोड़कर जौनपुर आ गया है .दोपहर की भीड़ को देख कर ज्ञात होता था कि सम्पूर्ण पृथ्वी की वस्तुएं यहाँ बिकने आ गयी हैं.एक के माथे का तिलक छूट कर दुसरे के माथे में लग जाता था.रास्ता चलने में औ’रतों की चूड़ियाँ टूट जाती थीं.घोड़े हाथियों की बड़ी भीड़ थी.प्रायः लोग पिस जाते थे .इब्राहीम शाह अपने महल के ऊपरी भाग में निवास करता था. अपने घर में आये अतिथि को देख कर जिस प्रकार लोगों को प्रसन्नता होती है वैसी ही प्रसन्नता बादशाह को होती थी .
इब्राहीम शर्क़ी, महमूद शाह, मुहम्मद शाह तथा हुसैन शाह सभी ने ज्ञान और  कलाओं पर इतना ध्यान दिया कि थोड़े ही समय में जौनपुर अपनी इ’मारतों, मंदिरों, मस्जिदों, मदरसों, ख़ानक़ाहों,आ’लिमों , सूफ़ियों और भक्तों के लिए अन्य प्रदेशों में प्रसिद्ध हो गया.हुसैन शाह शर्क़ी स्वयं एक नायक था, उसने अनेक रागों और ख़याल का आविष्कार किया था.
सूफ़ी, विद्वान् तथा विद्यार्थी शहर के अलग अलग क्षेत्रों में जीवन व्यतीत कर रहे थे.इनमें अधिकतर ऐसे लोग थे जो इ’राक़, अ’रब और ईरान से आकर भारत में बस गए थे .यहाँ सूफ़ियों और विद्वानों की चौदह सौ पालकियां एक साथ निकला करती थी और लोग जुमा’ एवं ई’द के दिन इनका दर्शन करते थे. ये लोग राजनीति से बिलकुल अलग थे और राजदरबार से कोई सम्बन्ध नहीं रखते थे.
जौनपुर शहर को शर्क़ी शासन काल में शीराज़ ए हिन्द कहा जाता था.मुल्ला मुहम्मद अस्फ़हानी का कथन है कि यहाँ सैकड़ों मदरसे, ख़ानक़ाहें, और मस्जिदें निर्मित हुईं. सूफ़ी संत यहाँ दूर दूर के देशों से आए और उनके लिए वज़ीफ़े और जागीरें तय हुईं.जौनपुर का स्थान मुग़लों के समय तक बड़ा महत्वपूर्ण रहा.शाहजहाँ के शासन काल में अहमदाबाद, दिल्ली, जौनपुर शिक्षा के ऐसे केद्र थे कि यहाँ भारत के बाहर हेरात, अफ़ग़ानिस्तान आदि से लोग शिक्षा हेतु आया करते थे .
मुग़लों के अंतिम काल तक जौनपुर में ख़ानक़ाहों की अधिकता रही. प्रोफ़ेसर अ’ली मेंहदी ख़ान ने कहा है –
जौनपुर विद्या का केंद्र नहीं बल्कि विद्वानों और कलाकारों का केंद्र था. ये या इनके पूर्वज या गुरु अधिकतर ऐसे थे जिन्होंने अ’रब, इ’राक़, ईरान एवं अन्य स्थानों पर पूरी शिक्षा प्राप्त करने के बा’द जौनपुर को अपना स्थायी निवास बनाया था. इसलिए हम बिना किसी झिझक के कह सकते हैं कि जौनपुर की सभ्यता वास्तव में सम्पूर्ण भारत की सभ्यता का सम्मिश्रण थी .
सिकंदर लोदी की विनाश लीला ने जौनपुर की उन्नति को तहस नहस कर दिया. इस के बा’द जौनपुर के इस स्वर्णिम सूफ़ी अध्याय का मानो अंत हो गया और धीरे धीरे इस शहर ने अपना वह अद्वितीय गौरव भी खो दिया. आज भी जौनपुर में कई महान सूफ़ी संतों की दरगाहें और ख़ानक़ाहों के अवशेष हमें जौनपुर के उस गौरवमयी अतीत की याद दिलाते हैं .

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